जिन्दगी
तुम मुझसे ज्यादा दवंगई ना दिखा
मौत
अभी भी मेरा है मीत
अमृत
पाने को कभी भी मन ना तरसे
विष
सदा रहा मेरा प्रीत
भूला
हर बार अपने ही आँगन मे
सीखा ना
गलतियों से कोई सीख
कहने को
तो बहुतेरे है अपने
देख ली
अपनों की भी नीत
रामानुज दुबे