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27 April, 2014

हजार हजार के पांच नोट और पॉकेटमार -


कल रात आठ बजे जब कमरे पर पहुंचा तो पाया जींस की जेब में पर्स नहीं है . पर्स में दस रूपये के दो नोट और एक हजार वाले पांच नोट थे . हजार रूपये वाले नोट असली नहीं थे , नकली थे . दस रूपये में पांच नोट लिया था हजार रूपये वाला, एक दुकान से  .नाटक के एक दृश्य  में जरुरत थी . पर्स के खोने का गम नहीं था लेकिन पॉकेटमारी हो जाये तो खीज तो होती ही है , इतना लापरवाह कैसे हो गया ही कोई मेरा पर्स टपका दे .

रातभर नींद नहीं आई . सोचता रहा - कब पर्स उड़ाया होगा मेरे पॉकेट से . राजेंद्रनगर से जब चला था तो पर्स पॉकेट में था , रास्ते में बस कंडक्टर को बस पास दिखाने के लिए पर्स से पास निकालकर कमीज वाले पॉकेट में रखा था . साथ ही पांच सौ का एक नोट भी कमीज वाले पॉकेट में था . जींस को नाटक वाले दिन पहना था तो पर्स जींस की जेब में था और पर्स में रह गया था नकली नोट . मेहदीपट्नम में उतरने के बाद पॉकेट में आदतन हाथ डाला था , उस समय पर्स पॉकेट में ही था . तो पॉकेटमारी मेहदीपट्नम  से राजेंद्रनगर लौटते समय  हुआ है .

जब इण्टर में था तो मेरा एक सहपाठी था , जिससे मेरी गहरी छनती थी , पॉकेटमार था . उसके दूर के रिश्ते का मामू भागलपुर स्टेशन पर पॉकेटमारी करता था . उसने पॉकेटमारी उसी मामू से सीखा था , पर वह इसे एक हुनर की तरह समझता था . एक बार मैंने भी जिद्द किया था की मुझे भी सिखाओ - तो उसने अपने मामू से मिलवाया था और तीन दिन तक उनका शागिर्द रहा था ( लेकिन अंतिम दिन एक लड़के को पीटते देखा तो सारा उत्साह काफूर हो गया और फिर  कभी मामू से नहीं मिला -- ये पूरा प्रकरण बड़ी मजेदार है , कभी इस पर भी सविस्तार लिखूंगा -). उन तीन दिनों में पॉकेटमारों के गतिविधियों के बारे में तो समझ बन ही गयी थी . खैर पूरी घटना पर एक बार फिर से जब गौर किया तो दो - तीन चेहरा नज़र आ रहा था जिसपर पॉकेटमारी का शक हो रहा था .

आज शाम फिर मेहन्दीपटनम बस स्टैंड पर रुका. मेरी नज़र एक चेहरे पर गई जिस पर मुझे शक था पॉकेटमारी का . उसे देखकर मैंने मुस्कुराया , उसने भी मुस्कराहट से जवाब दिया . मैं बस स्टैंड के बगल में खड़े स्वीट कॉर्न बेच रहे छोटे लड़के से दस रूपये का 'स्वीट कॉर्न ' बनाने को कहा . तब तक वो आदमी जिस पर मुझे शक था पॉकेटमारी का , उसने भी उस लड़के से दस रूपये का 'स्वीट कॉर्न ' बनाने को कहा. जब छोटू हमारे लिए 'स्वीट कॉर्न ' बना रहा था , तो उस आदमी ने पूछा -  'क्या काम करते हो ?' मैंने उसके प्रश्न को नज़रअंदाज़ कर दिया . उसने फिर पूछा - 'कहाँ तक पढ़े लिखे हो' - ये दोनो सवाल मुझे चुतियापा लगता है - मैंने हसते हुए कहा - 'स्वीट कॉर्न बन रहा है - खाते है'. खाने के बाद चेंज पैसे की समस्या आई. उसने बिना कहे ही मेरे पैसे चुका दिए . पता नहीं क्यों धन्यवाद देने की बजाय मेरे मुँह से निकल गया - अभी भी मेरे दस रूपये बांकी है . वह अजीब तरीके से हंसा , फिर बोला - ठीक है , लेकिन तुम करते क्या हो ?
मैंने कहा - कुछ करूँ ना करूँ लेकिन तुम्हारा वाला काम नहीं करता हूँ .
लेकिन मुझे तो बिरादर लगते हो , पहचान कैसे लिया -  - उसने फिर लगभग हसते हुए पूँछा. - बुरा आदमी   दीखता हूँ क्या ?

मैंने उसे गौर से देखा - मुझे वो कई सफेदपोश शरीफों से ज्यादा शरीफ लग रहा था . मैंने कहा - बुरा क्यों दिखोगे , बिरादर ही समझो - चलो एक फोटो खींचते हैं साथ -साथ . वो डर गया उसे लगा कहीं मैं उसे फंसा ना दूँ . मेरा उद्देश मात्र उसके साथ फोटो खिंचा इस घटना को फेसबुक या ब्लॉग पर डालने के लिए था . उसने थोड़ी सख्ती से कहा - नहीं फोटो - शोटो नहीं खिंचवाना . मेरी बिरादरी के नहीं हो लेकिन शरीफ हो - ये लो दस रूपये . यह कहकर उसने दस रुपया मेरी हथेली पर रख दिया और तेजी से गली की तरफ चला गया .

उस पॉकेटमार से अपने बारे में 'शरीफ ' सुनना सचमुच भला लगा .

~~~ रामानुज दुबे  

05 April, 2014

Rangakalpa's Event at Lamakaan

Rangkalpa Presents -

Short stories & Satire Evening - An Evening with Three Plays


Play : Uski Maa
Writer : Pandey Bechan Sharma “Ugra”


Play : Sari Bahas Se Gujarkar
Writer : Sharad Joshi

Play : Ansan
Writer :Harishankar Parsai

This is a solo presentation

Direction & Acting : Ramanuj Dubey

Light  Design: Smruti Ranjan Biswal
Music Design : Krushna Kumbhar
Stage Design : Roushan

Venue : Lamakaan
Date : Wed. 16th April, 2014
Time : 7 PM (Total Plays’ Duration - 70 min.)
Entry- Tickets – Rs 100/-
Phone no. – 9848487541 , 9700973297


About Plays & Playwrights

‘Uski Maa’


Uski Maa is one of the well known stories of Pandey Bechan Sharma ‘Ugra’. This is the story of Lal , his revolutionary friends, his mother and the the chachaji – the narrator of the story. Lal is a student who along with other college friends participating in the armed revolution to free the country from British Empire. Chachaji, the narrator of the story is loyal to Empire but sympathetic to Lal. Chachaji represents the old generation who believes in getting along with the system whereas Lal and his friends represents new generation who want to see total revolution and establishment of new system. The central character of the story is Lal’s mother who loves Lal and his friends alike. Lal and his friends see the mother India in her. This is a very engaging story

About Writer:-

Pandey Bechan Sharma ‘Ugra’ (1900-1967) is a renowned Hindi writer. He is known for patriotic and revolutionary writing. Some of his famous books are – ‘Pili Imarat’, ‘Mukta’, ‘Kala ka Puruskar’, ‘Kal kothri’ .

Sari Bahas se gujarkar -

The story is based on the rampant corruption and bribery seen in public office. The story revolves around a common man who goes to office to get loan but there he is asked to prove himself that he is alive. How he deals with the harsh treatment of the official and gets loan is worth watching.

About Writer:-

Sharad Joshi ( 1931-1961 ) was a Hindi poet, writer, satirist and a dialogue and scriptwriter in Hindi films and television. He was awarded the Padma Shri in 1990. He is most known for his dialogues for comedy TV serials of the 1980s including Yeh Jo Hai Zindagi, and Vikram Aur Vetal. He has also written dialogues for Hindi film like Utsav (1984) and Dil Hai Ki Manta Nahin (1991)

Anshan -
Anshan or hunger strike has deep roots in the Indian society and Indian psyche. During Indian independent struggle Gandhi ji engaged in several famous hunger strikes. In addition to Gandhi, various others have used the hunger strike option during the Indian independence movement. Some prominent names are Jatin Das (who fasted to death) and Bhagat Singh.
But if one does hunger strike to usurp the other’s wife? Sounds crazy – isn’t it. Yes, Bannu is keeping fast unto death to get his love interest, married Shavitri. Ironically Shavitri hates Bannu, but Bannu is determined in his mission. In this hunger strike, he gets supports from various Baba , Swami and social & political leaders and his hunger strike becomes national issue. This is a social and political satire that makes mockery of hunger strike and the system.


About Writer –



Harishankar Parsai ( (1924 – 1995) is a noted satirist and humorist of modern Hindi literature and is known for his simple and direct style. He won Sahitya Akadmi Award in 1982 for his satire


About “Rangakalpa”


Rangakalpa is an amalgamation of diverse minds of people from various walks of life with definite objectives to reach to the various cultures, people and communities. We the member of the group, feel that, there is a need to break the elitist tag, often labeled on the performing art, particularly on theatre and through our work we are trying to break the conventions of theatre academics, in order to reach common man, to make him/her aware of his/her rights & responsibilities in today’s society. Understanding the fact that our time and society is reflected through the art, Rangakalpa works with a sense of commitment. Our aim is to achieve perfection and to break the dogmas of conventions that drag our society towards conservatism, an obstacle to progress in all sense. This event  is our first venture .