साजिश
एक आवारा शब्द
जो कहीं भी तैरता दिख सकता है
इधर भी , उधर भी
इनकी हंसी में भी
उनके रुदन में भी
हमारे मन में भी
और तुम्हारे मन में भी
हर तरफ ही
साजिश
अख़बार या सरकार की तरह होता है
साजिश का हकीकत इतना सतही नहीं होता
साजिश का भी एक साजिश होता है
साजिश के अंदर भी एक साजिश
जिसमे ताकत होती है
अच्छे बुरे सब को शामिल करने का
ठीक उसी तरह
ठीक उसी तरह
जिस तरह सरकार या अख़बार
तैयार कर लेता है दलालों का एक फ़ौज
दूर से दीखता हुआ साजिश
दरअसल एक समाज है
हर एक का अपना अपना खटराग है
लेकिन साजिश तो है
जो बनता है , बिगड़ता है
बिगाड़ता भी है
और हर एक साजिश से बिगड़ता समाज
ढूढँता रहता है मानव का उत्थान -पतन
और फिर जुट जाता है
एक नई साजिश में ---
रामानुज दुबे
रामानुज दुबे
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