सांप और सीढियों
सा हमारा रिश्ता चढ़ाव उतरन से
आजिज मै
काश सीखा होता
तुम्हारी तरह
गिरगिट जैसे
दीवारों को पकड़ शिकार को
गटक जाना
या रंग बदल
झाड़ियो में छुप
नए शिकार को
चुन पाना
तेरे साये से
मुक्त मै
अब इस बात का
कोई गुरेज नहीं
तुम
परी बनो या पतिता
रामानुज दुबे
(यह कविता मेरे उन सारे दोस्तों को समर्पित जिन्हें दुखी आत्मा टाइप कविता पसंद है )
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