Total Pageviews

29 May, 2011

नहीं निकल पा रहा ...................................


मै  ' मै ' से नहीं निकल पा रहा 
मै ' तुमसे ' भी नहीं निकल पा रहा 
करता हूँ  धरती आसमान की बातें
पर मै घर से नहीं निकल पा रहा 

जिन्दगी जीने की जिद्द है 
हर रोज मरने से नहीं निकल पा रहा 
भूख से लड़ता हूँ हर छन 
भूख से नहीं निकल पा रहा 

सीने में आग लिये बैठा हूँ 
पर बरसात से नहीं निकल पा रहा 
जिन्दगी तेरे आस पास रहना मुझे
मुर्दों की बस्ती से नहीं निकल पा रहा 

रामानुज दुबे 







1 comment:

  1. humse se kahe bina nikalta raha apna saans
    hum na jaane kitna badhta raha apna vishwas
    insaan ko haq nahi roz nikalta suraj ko rokne ka
    phir kyon band rakhein nikalte in rangin sapno ko.

    Nikalne Do Ramanuj..

    but ur words are really touching..
    keep posting.

    ReplyDelete