मै ' मै ' से नहीं निकल पा रहा
मै ' तुमसे ' भी नहीं निकल पा रहा
करता हूँ धरती आसमान की बातें
पर मै घर से नहीं निकल पा रहा
जिन्दगी जीने की जिद्द है
हर रोज मरने से नहीं निकल पा रहा
भूख से लड़ता हूँ हर छन
भूख से नहीं निकल पा रहा
सीने में आग लिये बैठा हूँ
पर बरसात से नहीं निकल पा रहा
जिन्दगी तेरे आस पास रहना मुझे
मुर्दों की बस्ती से नहीं निकल पा रहा
रामानुज दुबे
humse se kahe bina nikalta raha apna saans
ReplyDeletehum na jaane kitna badhta raha apna vishwas
insaan ko haq nahi roz nikalta suraj ko rokne ka
phir kyon band rakhein nikalte in rangin sapno ko.
Nikalne Do Ramanuj..
but ur words are really touching..
keep posting.