कैलेंडर में पड़ी तारीखे
मानो
सड़क पर का खड़ा आदमी
वक़्त के साथ हो जाता है
एक गुजरा कल
मानो
धुंधले सीसे पे पड़ी मोटी गर्द
सपने सहेजने भर के लिए
एक सतत जद्दोजहद
सूरज को समझाने को
चाँद पर जाने को
आकाश थाम
धरती को बढाने को
सड़क पर का खड़ा आदमी
तैयार इतिहास बन जाने को
अज्ञात बन
हर उस शख्स के पीछे
खड़ा रह
फ़ौज बन जाने को
जो आवाज लगा कहता हो
निकल पड़ा हु मै
सपने बचाने को
सड़क पर का खड़ा आदमी
भूखा नंगा
सत्तासीन समाज से निर्वासित
लड़ रहा
कैलेंडर से निकल
अपना अस्तित्व बताने को
भूत से निकल
वर्तमान से लड़
भविष्य बचाने को
रामानुज दुबे
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