{यह कविता महान क्रांतिकारी che गुएवारा (che guevara ) के जन्म दिन ( 14th जून )पर उनको समर्पित ....जिनसे कई मुद्दों पर 'असहमत' होते हुए भी 'सहमत' हु }
वह रो रहा है
कल भी रो रहा था
आज भी रो रहा है
शायद , कल भी रोयेगा
रोना उसका चिरंतन सत्य है
ठीक उसी तरह
जिस तरह
आना सूरज का
रोज सुबह
बहना हवाओ का
चारो तरफ
वह रोता क्यों है
यह सवाल
उसके सामने भी है
एक सवाल
बस रोता रहता है
यह सोच
की यही उसकी नियति है
यही उसकी जिन्दगी है
उसे शायद पता नहीं
रोना
किसी की नियति नहीं होती
जिन्दगी नहीं होती
रोना क्षण भर का आवेग है
क्षण भर ही सही लगता है
नहीं
क्षण भर भी सही नहीं लगता
पर हो सकता है
क्षण भर का रोना
क्षम्य हो
सह्य हो
वह दिन मे भी रोता है
वह रात मे भी रोता है
वह इतना रो चुका है
वह सपने मे भी रोता है
गाने में भी गाता है
रोने का गीत
उसके चारो तरह के
हसने की दुनिया
अब भयभीत है
उसके लगातार रोने से
है भयाक्रांत
कही रोने का वेग
सबल न हो जाए
टूट कर यह रोना
न आ जाए कही
हसने वाले की दुनिए मे
हसने वाली दुनिया के लोग
कभी हंसी बाटने की बात करते है
कभी उसे
अपनी दुनिया में बसाने की बात करते है
कभी न रोने की तरकीब बताते है
कभी हसने का गुर सिखाते है
सावधान ! रोने वालो
दिग्भर्मित न हो जाना
हसने वालो की सहानभूति से
ये हसते है
क्योकि इन्होने छिना है
तुम्हारी हंसी
ये सहानभूति जताते है
प्रेम दिखाते है
यह दिखावा है
छलावा है
यह छलावा
तुम्हारे आंसू नहीं पोछेंगे
पोछेंगे आंसू
तुम्हारे अपने ही हाथ
हसने के लिए
करो मजबूत अपना हाथ
इससे ही बदलेगी दुनिया
इससे ही बनेगा नया समाज
रामानुज दुबे
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