ओस से टपका आसमान
रामानुज दुबे
भींगा मन
तृप्ति की चाह लिए
सामने पड़ा समंदर
खारा नमकीन
प्यास बुझाने में असमर्थ
ओस की ओट में छुपा
आसमान निहारता आम जन
बदलाहट की अकुलाहट लिए
स्वेद जल के बाढ़ से
क्या संभव है
समंदर का मीठा होना
समंदर से निकालना होगा आसमान
मीठा सच्चा विस्तार लिए हुए
सपना असंभव को संभव बनाने का
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