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02 July, 2011

एक जलता हुआ गावं...


एक जलता हुआ गावं
वह 
जो था  बेजुबान 
जो था सदियों तक मौन 
निसहाय असहाय 
आज भी वह
पर बोल रहा अब
वह शस्त्र की जुबान 

एक जलता हुआ गावं 
मुर्दों की सड़ांध 
उसमे भींगा
 पूरा प्रान्त 
कढाई में पक रहा 
मानव मांस 
जो पतीली में परोसा गया 
गगनभेदी कहकहे के साथ 
चख रहा 
सत्ता बुर्जुवा सामंतशा 

एक जलता हुआ गाव
झेल रहा जनतंत्र की 
आऊं माओं टौ
मदमाती सत्ता 
आज भी न 
सुनेगा उसको 
कुचलना चाह रही 
उसकी नव जुबान 

(फोटो इन्टरनेट से )

रामानुज दुबे 






  
 

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