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29 June, 2014

चर्चा अंगिका और इस भाषा के पहले फिल्म की ---





अंगिका हिंदी की सिस्टर लैंग्वेज है . मेरी  मातृभाषा . ऐसे अंगिका - बंगाली , मैथिलि , ओड़िया और असमिया की भी सिस्टर लैंग्वेज है . मातृभाषा होने के बावजूद भी इस भाषा का काफी कम प्रयोग कर पाता हूँ . माँ , भैया , भाभी और दीदी - कुल जोड़कर चार लोग हैं जिनसे मेरी अंगिका में बात होती है . कभी कभार किसी  पुराने  मित्र या रिश्तेदार का फ़ोन आ जाता है तो अंगिका में बात होती है . इसके अलावा बिहार -झारखण्ड से जितने भी लोगों से बात होती है , उनसे हिंदी में ही बात होती है . यहाँ तक की घर के बच्चे भी (भतीजा , भतीजी , भांजा , भांजी ) हिंदी में ही बात करने में सहज महसूस करते हैं . मेरे एक मित्र के अनुसार नई पीढ़ी के बच्चे अंगिका में न के बराबर बात करते है . कारण - जो कान्वेंट में पढ़ते हैं उन्हें अंग्रेजी तंदुरुस्त करने के लिए शिक्षक स्कूल में लगभग अंग्रेजी में ही बात करने को प्रोत्साहित  करते है और जो बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते है वो हिंदी दुरुस्त करने के लिए आपस में हिंदी में बात करते है . बेचारी अंगिका सरकारी - कान्वेंट हर जगह बेगानी है .

मेरा एक मित्र है - हिमाचल से . उसे डोगरी भाषा  से बहुत प्यार है . काफी मीठी आवाज है उसकी . हमें डोगरी में काफी लोकगीत सुनाता था .एक बार उसके साथ 'डोगरी ' और 'अंगिका ' की स्थिति को लेकर बहस छिड़ी तो उसने  'डोगरी ' को लेकर अपना एक बड़ा मजेदार अनुभव सुनाया . बताया - हिमाचल की लड़कियाँ घर में तो 'डोगरी ' बोल भी लेती है पर कॉलेज में , रेस्टोरेंट में , पब्लिक प्लेस में या हिमाचल से बाहर डोगरी बोलने में शर्म महसूस करती है . आप उनसे डोगरी में बात करते रहो लेकिन वो जवाब देंगी हिंदी में ही . लड़कों के साथ ऐसा नहीं है . सौ में से नब्बे फीसदी लड़के डोगरी में बात करने पर डोगरी में ही जवाब देते हैं . उसका 'जेंडर आधारित अवलोकन ' कितना सही है या गलत भगवान जाने - पर है मजेदार . मेरा भी एक मजेदार अनुभव 'अंगिका ' को लेकर है . २००९- २०१० की बात है . मैं हैदराबाद एयरपोर्ट पर पुणे जाने वाली फ्लाइट का इंतजार कर रहा था .सामने बैठे सहयात्री से बात करने पर पाता चला की वो भागलपुर से है . मैं अंग्रेजी से अंगिका पर आ गया . पर भाई साहब अंगिका इतने आर्टिफिसिली सोफिस्टिकेशन ' के साथ बोल रहे थे , ऐसा लग रहा था या तो वो अपने लेवल से उतरकर अंगिका में बात कर रहे हों या फिर अंगिका में बोलकर इस भाषा पर उपकार कर रहे हों . मुझे लगा इस भाई साहब से अंग्रेजी में ही बात करना सही है . मैं फिर अंग्रेजी में ही बातचीत जारी रखा . आप अपने क्षेत्र के लोगो से अपनी मातृभाषा में इसलिए बात करते हो कि वार्तालाप सहज हो , आत्मीयता बढे . अगर मातृभाषा यह काम करने में असफल रहती है तो दुःख होता है , चोट पहुँचती है .

अंगिका मूलतः बोलचाल की भाषा है . एक बड़ी संख्या में लोग इस भाषा को बोलते है .अंगिका लोकगीत पूरे हिंदी पट्टी में लोकप्रिय है . कुछ साल पहले भागलपुर के लोकल अख़बार में 'अंगिका ' में कॉलम भी छपना शुरू हुआ था (पता नहीं अभी भी छप रहा है या नहीं ) और कुछ साहित्यकारों के अंगिका में कहानियाँ और उपन्यास भी लिखा है ( दुःख की बात है अभीतक अंगिका का  एक भी कहानी या उपन्यास नहीं पढ़ पाया हूँ ). मेरे एक पत्रकार मित्र का मानना है - प्रतिभाशाली साहित्यकार अंगिका में कहानी या उपन्यास लिखने से बचते है - कारण यहाँ तो ना ही  पहचान  हैं , ना  ही पैसा . हिंदी में लिखेंगे तो ख्याति भी मिलेगी और बडा पाठक वर्ग भी .

अंगिका में एक दो फिल्में भी बनी हैं . कुछ खास नहीं .  औसत से भी नीचे . बेकार . कुछ महीने तक मेरी धारणा थी कि अंगिका में अच्छी फिल्म नहीं बन सकती . लेकिन मैं गलत था . कुछ महीने पहले टी. वी. पर चैनल बदल रहा था तो ' डी डी  भारती ' पर अंगिका में प्रोग्राम आते देखकर रुक गया . सोचा कोई डाक्यूमेंट्री फिल्म होगी . यदा कदा डाक्यूमेंट्री फिल्म में ही अंगिका को सुन पाता हूँ . लेकिन प्रोग्राम डॉक्यूमेंट्री नहीं था - फिल्म थी - टेली फिल्म . कुछ देर बाद फिल्म में अमोल पालेकर को देखा . अमोल पालेकर को अंगिका में बोलते देखकर मन गदगद हो गया .  आपका एक पसंदीदा कलाकार  जिसकी मातृभाषा मराठी हो वो हिंदी में नहीं अंगिका में बोल रहा हो वो भी डब नहीं अपनी आवाज में , ख़ुशी मिलेगी ही . फिल्म अच्छी थी . इस फिल्म में अमोल पालेकर एक आवारा मजदूर की भूमिका निभाई है जो औरतबाज है . मजदूरी के लिए जाते समय उसकी मुलाकात एक औरत से हो जाती है जो गर्भवती है , और गर्भ का पूरा समय हो गया है और रस्ते पर पड़ी  प्रसव पीड़ा में है .  बारिश हो रही है . अस्पताल जाने वाले रस्ते में नदी भी है .कहानी उस मजदूर द्वारा उस महिला को सुरक्षित अस्पताल पहुंचा , डॉक्टर से विनती कर अस्पताल में दाखिला दिला सुरक्षित प्रसव करवाने तक ही है . तमाम अवगुणों के बावजूद वह मजदूर उस महिला की सहायता निःस्वार्थ भाव से  करता है . वह मजदूर उस महिला का ना प्रेमी है , ना पति , ना सगा, ना संबंधी, ना ग्रामीण , ना जान पहचान वाला - बस मानवता के नाते वह महिला की मदद करता है . फिल्म को बीच से देखा था तो फिल्म के नाम का पता  नहीं चल पाया . विकिपीडिया पर सर्च किया तो पता चला उस टेली फिल्म का नाम था " आदमी और औरत " और उसके निर्देशक थे - तपन सिन्हा  जो  भारत के जाने माने फिल्म निर्देशक रहे हैं . छप्पन मिनट की ये फिल्म सन १९८४ में बनी थी जिसे प्रोडूस दूरदर्शन ने किया था और पहली बार दूरदर्शन पर दिखाया गया था . इस फिल्म को  भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव २००७ में भी दिखाया गया था . हालाँकि  विकिपीडिया पर इस फिल्म की भाषा  हिंदी बताई गयी है लेकिन पूरी  फिल्म अंगिका में है . मेरे ख्याल से " आदमी और औरत " अंगिका की पहली (टेली ) फिल्म है . कितनी सुखद बात है की अंगिका की पहली फिल्म के निर्देशक तपन सिन्हा और  लेखक प्रफुल्ला रॉय  बंगाली और मुख्य कलाकार अमोल पालेकर मराठी और महुआ रॉय चौधरी बंगाली है .


~~~ रामानुज दुबे