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04 August, 2014

नंगे लोग -



मैं हर रोज नंगे लोगों को देखता हूँ .

रस्ते के किनारे  पड़ा
हर शाम
देशी पिए
नंगा मजदूर

फटी चड्डी में
इधर उधर भटकता
भूखा भिखारी

सड़को गलियों में
हरदम दौड़ता
गरीबों के बच्चे
जिन्हें कपडे तब तक नहीं मिलते
जब तक जवानी
शरीर में दस्तक ना दे दे .

ये हसते नंगे लोग
नंगे होकर भी
नंगे नहीं लगते .

कपडे पहने नंगे लोग
परिचय पत्र बिना भी
पहचान में आ जाते हैं

कुछ लोगों की नग्ण्ता
अति संक्रामक होती है
बाजार से शुरू होती नंगई
समां जाती है
समाज तक
क्षण भर में .

फिर बिकता है
नंगापन
फटाफट
सोने के भाव .

कपडे यहाँ कोई नहीं पूछता
जो खरीद सकते है
वो कपडा नहीं
नंगापन खरीदते  है

डरता हूँ
कहीं नंगापन ही
ना बन जाए हम सबकी पहचान

~~~ रामानुज दुबे