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26 September, 2010

पंछी



मै हर राह पर सही था
पर राह सही न था
जिसको पूजता रहा दिनरात
वह परवरदिगार न था

नींद खुली
तो मीलों चल चुका था
 सपनों  के  सफ़र में
एक जीवन जी चुका था

बेडियों मै बंधा
मै स्वयं को खो रहा था
झूठे फरेबी वादों को
अकेले ढ़ो रहा था 

अब भूत का सर्प
बर्तमान को ना डसेगा
भविष्य में ये पंछी
गगन में उड़ेगा

रामानुज दुबे

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