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19 July, 2011

वह औरत ....

वह अस्पताल के बाहर 
फर्श पर पड़ी 
प्रसव वेदना से छटपटा रही थी 
उसका पति 
मुह में पान चबाये 
उसकी पीडा को 
बिना दिल में लाये 
नर्स से बतिया रहा था 
नर्स को 
समझा रहा था 
कह रहा था 
यह नवमी  बार का चक्कर है 
अब तक आठ जन चुकी है 
पाँच मरा है 
तीन खड़ा है 
का कहें मैडम 
इस औरत का 
किस्मत ही सड़ा है 
लड़की जनती है हरवार 
ना चाहते भी 
आना पड़ता है अस्पताल 
हजारों खर्च कराएगी 
फ़िर एक लड़की 
यहाँ से लेके जायेगी 
ना जीती है 
ना मरती है 
सर का बोझ है 
दिनभर हमसे लड़ती है 
आइये  मैडम 
जल्दी इस बार का काम निबटाइये
हमको तो फिर 
आना ही है अगले साल 
जबतक नर्स 
अस्पताल के बाहर निकली 
तब तक वह औरत 
मर चुकी थी 
आसमान की ओर मुंह फॉड़े
शायद पूरी दुनिया से कुछ कह रही थी 

ऎसी औरत मै रोज देखता हूँ
फर्क सिर्फ़ इतना है 
यह औरत 
फर्श पर लेटी, मरी पड़ी है 
दूसरी औरत 
जिन्दा है चल रही है 






रामानुज दुबे 

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