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16 October, 2013

Nonsense Talk - X - कल्चर 'सरवाद ' का .


कल्चर 'सरवाद ' का .

तीन साल पहले की बात है .'उड़ान ' देखकर जब मैं अपने मित्र के साथ सिनेमा हॉल से निकला तो देखा मित्र उदास है .पूछा - तो टाल गया . फिर पूछा - तो बोला - डर लगता है यार , फिल्म की तरह मेरा बाप भी यह न कह दे की कल से मुझे ' सर ' बोलो . मैं हँसा . मैं चाचा जी को अच्छे तरीके से जानता हूँ . निहायत ही शरीफ और शांत किसम के आदमी हैं . हाँ , कभी कभी मेरे ग्रेजुएट लेकिन बेरोजगार मित्र पर जरुर भड़क जाते हैं . उन्हें लगता है वो धीरे धीरे निकम्मा होता जा रहा है .लेकिन को अपने को 'सर ' कहलवायेंगे - ना ना - ऐसा तो नहीं होना चाहिए .
मुझे हँसता  देखकर मित्र भड़क गया - हँस ले बेटा - . मुझे लगने लगा है की आजकल मैं नौकर हो गया हूँ घर का . मुफ्त का ड्राईवर हो गया हूँ . ऑफिस लाना , पहुँचाना . सच कहता हूँ अगर अगर मेरे बाप ने ये फिल्म देख लिया तो मुझसे अपने को 'सर ' कहलवाके ही छोड़ेगा . फिल्म देख देख कर बुड्ढे का दिमाग ख़राब हो रहा है . मुझे याद आया . पिछली बार चाचा जी ने ' बागबान ' देखा था और उसके बाद से उनकी प्रीति चाची जी के लिए दुगुनी हो गई थी . इसमें घाटा बेचारे मेरे मित्र को हुआ था - उसकी पाकेट मनी आधी कर दी गयी थी .

लेकिन 'सर ' कहने में दिक्कत ही क्या है - मैंने चुटकी ली .
वो भड़क गया - कहने लगा - सच कहूँ तो 'सर ' कोई सम्मानजनक शब्द है ही नहीं . ये शोषक समाज के संबोधन के लिए बना है जिसे शोषित इस्तेमाल करते हैं अपने आकाओं के इगो सेटिसफेक्सन के लिए . मुझे डर लगता है की बेरोजगारी के चलते बाप बेटे का रिश्ता कहीं शोषक -शोषित में ना बदल जाए.
मुझे कहीं से भी मेरा मित्र शोषित नजर नहीं आ रहा था . चाचा जी के गुस्से वाले क्षण में ( जो यदा कदा ही आता था ) वो पारासाईट जरुर था , लेकिन नॉर्मली वो उनका दुलारा ही था . खैर , मैं अपने इस मित्र से बहस करने की गलती कभी नहीं करता जब वो अपने रॊ में हो . अब मेरे मित्र का सारा गुस्सा 'सर ' शब्द पर आ गया था . 'सर ' सोसाइटी को हेरारकी में बांटता है . ये शब्द सोशल जस्टिस के लिए भी खतरा है . वगैरह - वगैरह.

उस मुलाकात के कुछ दिनों बाद पता चला की मेरे मित्र ने रेलवे ज्वाइन कर लिया है . काफी खुशी हुई , चलो अच्छा हुआ .

दो महीने पहले जब मेरे मित्र ने  फ़ोन पर 'सर ' कहकर संबोधित किया तो मैं जरा चौंका .
" कैसे हैं सर " - मेरे मित्र की ही आवाज थी . ऐसा लग रहा था मानो राग पीलू गा रहा हो .
"ठीक हूँ भाई "- मैंने जवाब दिया .
"और बताइए सर " - उसका अगला प्रश्न था .
मुझे झुंझलाहट हो रही थी . आश्चर्य हो रहा था . यही शख्स था जिसे 'सर ' शब्द से भारी चिढ थी और अभी फ़ोन पे 'सर सर ' किये जा रहा है .
पूछा , तो बोलने लगा - अरे सर , अब तो सुबह से लेकर शाम तक इतनी बार 'सर ' बोलता और सुनता हूँ की ये शब्द अब तालू से सट गया है . और तो और घर में भी 'सर ' ही सुनता हूँ .
मेरे कान खड़े हो गए . मैंने कहा मतलब  घर में ही शोषित शोषक वाला रिलेशन .
उसने चटकारे लेते हुए कहा - अरे नहीं सर , ऐसा नहीं है . पत्नी प्यार से 'सर' कहती है और हम 'मैडम '. 'सर -मैडम , मैडम -सर ' - ये शोषित शोषक वाला रिलेशन थोड़े ही है , ये तो रेस्पेक्ट दो , रेस्पेक्ट लो वाली बात है . मुझे तेलगु कॉमेडियन ब्रह्मानंदम के फेमस डायलाग 'गीव रेस्पेक्ट , टेक रेस्पेक्ट ' की याद आ गयी .

उस दिन मुझे लगा की 'सर ' शब्द की स्वीकार्यता समाज में तेजी से बढ रही है . वो जमाना गया , जब 'सर ' सरकार बहादुर देती थी और 'सर ' से सर टाइप के लोग चिपके रहते थे . जब 'सर ' लोग दुखी हो जाते थे तो सरकार बहादुर को कभी कभी 'सर ' उपाधि लौटा देते थे . अब इस लोकतंत्र में 'सर' की उपाधि पाना मोबाइल के कनेक्शन पाने से भी आसान और सस्ता है . आप से काम पड़े तो 'सर ',  काम  निपटाना हो तो 'सर ', बड़े हो तो 'सर ', छोटे हो तो 'सर ' , अच्छे हो तो 'सर ' , बुरे हो तो भी 'सर ' . फिर जब आपका काम निकल जाए तो आप बिना नोटिस के भी सर को  'सर ' संबोधन से निकाल सकते है .

सचिवालय के चपरासी साधो जी को मैं जानता हूँ . वो ऑफिस में बहुत हैरान परेशान रहते है . कहते हैं - जब भी कोई ऑफिस आता है साहब से मिलने तो हमें भी 'सर ' कहता है , लेकिन साहब से मिलने के बाद हम फिर चपरासी हो जाते हैं . मिलने से पहले तक 'सर ' रहते है   मिलने के बाद 'सर टाइटल छिन जाता है .

मैंने पूछा - " फिर  आप कैसे निपटते हो "
उसने मुस्कुराते हुए कहा - " सिंपल है जी . जो जितना ज्यादा 'सर ' बोलता है , उससे उतना गुणा दस रुपया बढ़ा के मांगता हूँ साहब से मिलवाने के लिए ."
मैंने आश्चर्य से कहा - 'सर ' बोलने की सजा .
वो मुस्कुराते हुए बोला - " अरे नहीं  नहीं . 'सर ' की उपाधि से बाद में हटाने का हर्जाना ".

खैर ... अब कोई सामान्य नहीं है , सब 'सर ' है . आप 'सर ' है , मैं 'सर ' हूँ . जो 'सर ' है वो तो 'सर ' हैं ही , उनके बच्चे भी 'सर ' है . नेता 'सर ' है , अफसर 'सर ' है . नौकर 'सर ' है , चाकर 'सर ' है . यह भारतीय लोकतंत्र के 'सरवाद' का समय है जो दूर से दिखता तो ' अवसरवाद ' की तरह है , लेकिन अवसरवाद से निहायत ही अलग है .'सरवाद ' में विनम्रता से काम निपटाने की धारणा  है , सम्मान देकर और सम्मानीय होने का भाव है . ये एक नए कल्चर की शुरुआत है जो बेहद अलग और मजेदार है .


 ~~ ~~ रामानुज दुबे

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