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05 June, 2010

हम अपने बंद कमरे के गुलाम

हम अपने बंद कमरे के गुलाम
कमरे तक सिमित हमारी भावनाए
बंद खिडकियों मे बंधे हम
पुराने परदे की तरह जर्जर
धीमी रौशनी का आकाश
ना इन्द्रधनुष ना प्रकाश
 ना आशा का फैलाव
विस्वास का अभाव
सपने तक सिमित है
कमरे की परिधि भर 

खुले आसमान में
खो जाने का भय
ताज़ी हवा से
संक्रमित होने का संसय
आकाश का अजनवी विस्तार
कमरे का गन्दला फर्श भी दीखता साफ

कमरा सच नहीं है
सच आकाश है
कमरे के आगे
कमरे का विस्तार है

रामानुज दुबे

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